निश्चल निडर बाल मन
निश्चल निडर बाल मन
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माँ मुझको भी संगीन लान दे ,
मैं भी सीमा पर लड़ने जाऊँ ।
वीरो के सँग ताल मिलाकर ।
दुश्मन को ख़ाक मिलाऊँ ।
ले ले तू खिलौने सारे मेरे ।
इनसे अब मन भरता मेरा ।
बस एक बंदूक लान दे तू ,
मार शत्रु को मन बहलाऊँ ।
माँ मुझको भी …..
बरसेंगी गोली मेरे हाथों से भी,
बेटा तेरा तनिक नही घबराऊँ ।
उठा तिरँगा अपने हाथों में ,
दुश्मन के द्वार लगा आऊँ ।
करता जो वार बार बार हम पर,
मैं उसकी आँख से आँख लड़ाऊँ
माँ मुझको भी ….
बारूद दागूंगा मैं भी भर कर ,
दुश्मन का नाम मिटा आऊँ ।
शीश काट कर माँ मैं शत्रु का ,
तेरे कदमों की ठोकर लाऊँ ।
अपनी भारत माता की खातिर,
मैं भी सीमा पर लड़ने जाऊँ ।
माँ मुझको भी …
तू ही तो कहती है माँ मुझसे ,
राष्ट्र धर्म से बड़ा नही कोई ।
द्वार खड़ा है दुश्मन अपने,
मैं भी राष्ट्र धर्म निभा आऊँ ।
माँ तेरा ही तो बेटा हूँ मैं ,
“निश्चल” निडर रहा हूँ मैं ।
घुसकर दुश्मन के घर में,
दुश्मन को धूल मिला आऊँ।
माँ मुझको भी संगीन लान दे,
मैं भी सीमा पर लड़ने जाऊँ ।
…. विवेक दुबे “निश्चल”©…
5/2/18