निशब्द
“निशब्द”
दिवालियापन, क्यूं कर इस कदर बढ़ता रहा उन का
वो पत्तों को सींचते रहे इधर जड़ें खोखली होती रहीं
जो दिखाई देता है वो दिखता नहीं, दिखाया जाता है
वो पत्तों को देखते रहे, इधर जड़ें खोखली होती रहीं
सुना है उठाया है बीड़ा उन्होंने अब अक्षय की रक्षा का
उधर पत्ते खड़कते रहे, इधर जड़ें खोखली होती रहीं
ये कौन सा तरीका है सलीका है कोई बात करने का
पत्थर बरसते रहे, इधर जड़ें खोखली होती चली गई
लगा था एक बीमारी, भेद मिटा गई हमारी दुनिया के
लोग गिरते रहे सूखे पत्तों से मगर जड़ें खोखली ही रहीं
अभी भी वक्त है तालीम से सींचो इन अमन के पौधों को
इंसानियत की खाद दो, जिस की ये जड़ें बाट जोती रहीं
~ नितिन जोधपुरी “छीण”