निर्मल भक्ति
निर्मल भक्ति
मानव जीवन एक फुलवारी ,
जिसके हैं माली गिरिधारी ।
प्रेम-सिंचन से फैले हरियाली,
भक्ति से महके डाली-डाली।
माया की प्रकृति है काली,
जीव -बुद्धि भ्रमित कर डाली ।
पर प्रभु-प्रेम की बात निराली,
अहं त्यागने पर राह निकाली ।
जब भक्ति से जुड़ता संसारी,
तब पाप कर्म लगते हैं भारी।
उसको दिखते हैं प्रभु खाली,
राह जोहती आत्मा मतवाली ।
मिलन की आस को होकर प्यासी,
अधीर हृदय पर छायी उदासी।
गृहस्थ हो या फिर सन्यासी,
निर्मल भक्ति से मिलते बाँके बिहारी ।
– डॉ० उपासना पाण्डेय