निर्भय होकर जाओ माँ
निर्भय होकर जाओ माँ
कुंती कर्ण के पास गई,
अपना दुखड़ा सुनाया, पुत्र को बहुत मनाया।
पांच पुत्रों की जान बख्शने के लिए,
बड़ा भाई बनकर नया इतिहास रचने के लिए।
मां के कातर स्वर सुन कर्ण ने वंदन किया,
“तू बेशक मेरी मां है, पर निज स्वार्थ में
ऐसी फरमाइश न कर, ऐसी आज़माइश न कर।
मां, एक वचन सूर्य को साक्षी मान देता हूं,
पांच पुत्रों की मां तू सदा बनी रहेगी,
अर्जुन के बाद पुत्र रूप में मुझे स्वीकार करेगी।
अब मुझे मित्र धर्म से मत भटकाओ मां,
नहीं उठेगा शस्त्र चार पुत्रों पर अब।
निर्भय होकर जाओ मां, निर्भय होकर जाओ मां।”