निर्दयी मानव
एक छोटी सी मैना थी जो शीशम वृक्ष पे रहती थी,
छोटे अभी थे अण्डे उसके जिनको रोज़ वो सेहती थी
शीशम उसका रक्षक था जो दिन भर चौकस रहता था,
उसके घर की रक्षा करता आंधी बारिश सहता था
शीशम की लकड़ी से लोग घर अपने बनवाते हैं,
खूब रुपैया खर्चा करके इनको काट ले जाते हैं
चिड़िया-शीशम इन सब बातों को क्या समझें क्या जानें,
ये तो हम इंसान मतलबी जो हर कीमत पहचानें
एक दिन एक लकड़हारे ने शीशम वृक्ष को काट दिया,
अति विशाल उस पेड़ को छोटे कई टुकड़ों में बाँट दिया
मैना उस दिन दूर गई थी अपना दाना लाने को,
चूज़े पैदा होते ही रोते हैं पानी खाने को
वापिस लौटी तो उसका घर उजड़ चुका था क्षण भर में,
ना था शीशम, ना ही घोंसला, ना ही अण्डे थे घर में
मैना ने भी तड़प तड़प कर शीशम संग दम तोड़ दिया,
चूज़ों ने पैदा होने से पहले ही जग छोड़ दिया
‘जड़मति’ शीशम मरते दम तक उनका रक्षक बना रहा,
निर्दयी मानव फिर भी अपने मतलबी भवन बना रहा