निर्झर
लघु निर्झर का मृदु जल शीतल
बहता जाता कल- कल अविरल
ऊँचे – नीचे प्रस्तर पथ को
स्निग्ध नीर से सिंचित करता
जीवन के संघर्षों से नित
तप्त प्राण की पीड़ा हरता
अल्हड़ता का बाना पहने
अपनी मस्ती में चिर चंचल..
लघु निर्झर का मृदु जल शीतल
बहता जाता कल-कल अविरल
सघन वनों या मैदानों में
हिरण दलों से होड़ लगाता
कभी – कभी टेढ़ी पगडंडी
के संग चलकर साथ निभाता
सहज सरल सुंदर छवि ले
गाता रहता हर पल निश्छल
लघु निर्झर का मृदु जल शीतल
बहता जाता कल-कल अविरल
– सतीश शर्मा
सिहोरा, नरसिंहपुर(म.प्र.)