निराशा क्यों?
मैं केवल चरित्र की पूजा करता हूं।
ना धन वैभव के पीछे मै मरता हूं।।
लोभी ही धन वैभव पूजा करते हैं।
धनमोही ही अपनों को दूजा करते हैं।।
धन दौलत की बातें तो लोभी जानें।
मैं तो जग में चरित्र ढूंढता रहता हूं।।
माना वैभव संग बाहु बल रहता है।
चरित्र जगत में दारुण दुख सहता है।।
माना सारी भीड़ उन्हीं संग है रहती।
मैं तो उसी अकेले के संग रहता हूं।
मायावी दुनियां में, मैं माया से दूर रहा।
थोड़ी दुस्वारी और सारे दुख भोग सहा।।
धनभोगी लोगों से क्यूं ही मैं डाह करूं।
धन बल बिना भी मैं मस्त मलंग रहता हूं।
है मुझको यह ज्ञान जगत में सतचरित्र जीतेंगे।
हारे गए यदि तो भी एक नव इतिहास रचेंगे।।
सैनिक संत प्रह्लाद राम इस श्रेणी के ही तो है।
‘संजय’ ऐसे लोगों से ही तो मैं प्रेरित रहता हूं।।