निराला जी की मजदूरन
निराला जी की मजदूरन
कितनी ही सड़कों पर बिछा उसका पसीना है।
मगर किस्मत में उसकी आँसुओं के संग जीना है।
किन किन पथों पर उसने कितना पत्थर तोड़ा है।
मेहनत से अपनी कितनी सड़कों को जोड़ा है।
थक हार कर थी बैठती जिस पेड़ के नीचे।
वह पेड़ खुद ही सोचता जान अब कैसे बचे।
है बहुत कमजोर उसका तन हुआ जर्जर।
मगर वह तोड़ती पत्थर ।
इलाहाबाद के पथ पर ।
वह अब भी तोड़ती पत्थर।
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मंत्री बन गया है अब जो ठेकेदार था उसका।
है पत्थर तोड़ता बेटा जो होनहार था उसका।
तरक्की इसतरह उसकी दिखने लगी है अब।
फोटो पोस्टरों पर उसकी छपने लगी है अब।
इलेक्शन के समय वो सबकी खास हो जाती।
कागजों पर कालोनी उसकी पास हो जाती।
राशनकार्ड की खातिर भटकती रहती वह दर दर।
वह तोड़ती पत्थर।
इलाहाबाद के पथ पर।
वह अब भी तोड़ती पत्थर।
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अब तलक उसका कहीं भी बन न पाया घर।
वो आज भी रहती है सड़कों के किनारों पर।
बड़ी बेबस है अब भी वो निराला जी की मजदूरन,
फटे चिथड़ों से अब भी झांकता उसका है बूढ़ा तन।
सिर पर कड़कती धूप, हथौड़ा हाथ में अब भी।
गरम लू अब भी लगती है गला है सूखता अब भी।
मिलेगी आज भी तुमको वह तोड़ती पत्थर।
वह तोड़ती पत्थर।
इलाहाबाद के पथ पर।
वह अब भी तोड़ती पत्थर।
-रमाकान्त चौधरी
उत्तर प्रदेश।