निरंग बैरागी मन मेरा
निरंग बैरागी मन मेरा
तरसे तेरे दरस को साजन
जैसे रैन सवेरा
निरंग बैरागी मन मेरा।
पवन हिंडोलों में खोया सा
यह मेरा मन तरसे
जैसे तेरे दरस को साजन
बीत गए हैं बरसे।
अब क्या दीपक लौ
क्या चिंगारी
खो बैठी मैं सुध बुध
हारी
दिखे चहूँ ओर अंधेरा
निरंग बैरागी मन मेरा।
ना कुछ समझूं ना कुछ जानूं
मै तो बस तुम्हें अपना मानूं
तेरे दिल की बात सुनूं मैं
तेरी हर धड़कन पहचानूँ
कब दर्शन हो तेरा
निरंग बैरागी मन मेरा।
डॉ विपिन शर्मा