– नियति के लिखे को कोई टाल नही सकता –
नियति के लिखे को कोई टाल नही सकता –
जिसका जितना हो जीवन उतना ही वो जीता है,
जिसका जिसमे हो भाग्य वही होता है ,
मेरी सुनो में अपने परिवार को दादा की तरह संगठित देखने वाला,
पुरातन संस्कृति का पालन करने वाला,
चाहता था सबको एक साथ देखू,
मगर राजनीति के कुचक्र ने ऐसा खेल है खेला,
मेरे घर परिवार को कर गया मेला,
एक – एक सदस्य को कर गया वो अकेला,
किसी को किसी की चाह नही सब रहना चाहे अकेला,
अब में थक चुका होगा न इनका भी एक साथ में रैला,
क्योंकि नियति के लिखे को कोई टाल नही सकता,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान