नियंत्रण रेखा
{ नियंत्रण रेखा }
तेरी फिजा तेरी कायनात तू परमपिता परमात्मा है
इशारे से जग को नचाता तू सृष्टि का जन्मदाता है
मान लिया की तू दाता हैं पर ये कैसे कर पाता है
देता है जिसे तू जिंदगी उसे ही फिर छीन लेता है
कभी गर्मी कभी तुफां या बाढ़ में क्रोध बरसता है
कभी भूकंप के रूप में तू मौत का तांडव करता है
खुद ही गढ़ता है तू मिट्टी पुतले और प्राण भरता है
जाने कैसी आपदाओं से फिर उनके प्राण हरता है
हमें पता है हमने तेरी नियंत्रण रेखा पार कर दी है
तेरी सोचो से ज्यादा अपनी नस्ल पैदा कर दी है
शायद इंसान को जनम देकर अब तू पछता रहा है
कीड़ों की तरह रेंगते इंसान देख कर घबरा रहा है
सृष्टि के सर्जन में तूने इतना आनंद भर दिया है
इंसान तो क्या पशुओं को भी बावरा कर दिया है
कोशिश करके भी वह खुद को ना रोक पाता है
और बढ़ती हुई आबादी का कारण बन जाता है
अकेला इंसान ही नहीं इसका जिम्मेदार तू भी है
तू भी है गुनाहगार क्यों इंसान पर कहर ढाता है
तेरा यह खेल पल में ही मातम में बदल जाता है
श्रृष्टि कर्ता पल में मौत का सौदागर बन जाता है
क्यों तू एक या दो का निर्धारण नहीं कर पाता है
इन बंदिशों के साथ दुनिया में क्यों नहीं लाता है
न होगी फिर विनाश लीला जो तू ये कर पाता है
न आएगा क्रोध जो तेरा तीसरा नेत्र खुलवाता है
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© गौतम जैन