निभाना साथ प्रियतम रे (विधाता छन्द)
पड़े जब भी जरूरत तो, निभाना साथ प्रियतम रे
सुहानी हो डगर अपनी, मिले मुझको न फिर गम रे
बहे सद प्रेम की सरिता, रगों में आपके हरदम
नहाता मैं रहूँ जिसमें, मिटे सब क्लेश ऐ हमदम
बने दीपक अगर तुम जो, शलभ बनके रहूँगा मैं
मिलेगी ताप जो मुझको, वहीं जल के मरूँगा मैं
फकत इतनी इबादत है, जुड़े तन मन सघनतम रे
सुहानी हो डगर अपनी, मिले मुझको न फिर गम रे
रहों ना पास जो तुम तो, कमी लगती किसी की है
शिकायत का न दूँ अवसर, तमन्ना बस इसी की है
फँसे नैया भँवर में जब, सहज पतवार बन जाना
जलाकर दीप आशा का, मृदुल तू यार बन जाना
अपरिमित सिंधु सा रहना, सरस मन रूप हरदम रे
सुहानी हो डगर अपनी, मिले मुझको न फिर गम रे
मिले इक छाँव पलकों का, रहूँ तेरी पनाहों में
दुआ माँगू सदा रब से, मरूँ भी नाथ बाहों में
हवाएँ तेज हो कितनी, सहज चलते रहे हमदम
बहे गर वक़्त की आँधी, कभी बुझने न पाएँ हम
अलग ना कर सके कोई, रहें इतने निकटतम रे
सुहानी हो डगर अपनी, मिले मुझको न फिर गम रे
अगर तुम सामने जो हो, मरुस्थल भी लगे उपवन
मिले अहसास जो तेरा, बजे झंकार फिर तन मन
खिले सब फूल बागों के, स्वरों के भी सजे सरगम
चहक जाएं परिंदे भी, सुहावन देख कर मौसम
जले दीदार का दीपक, खुशी ना हो कभी कम रे
सुहानी हो डगर अपनी, मिले मुझको न फिर गम रे
नाथ सोनांचली