निगाहें
निगाहें बोलतीं यारो
दिलों को जोड़तीं यारो
हुआ है जो भी जीवन में
छुपाया जो भी है मन में
खुलासा हो ही जाता है
नज़र सब साफ आता है
ख़ुशी में खिल खिलाती हैं
दुःखों में दर्द गाती हैं
कभी बनती हैं अंगारे
कहें क्या इनको हम प्यारे
कभी ये दीप उल्फ़त के
कभी ये फूल क़ुदरत के
फ़ज़ाओं पर ये भारी हैं
कभी बनती कटारी हैं
दिलों को चीर जाती हैं
कभी मरहम लगाती हैं
कभी देती है ये ताना
कभी उल्फ़त का नजराना
कभी गहराई में जाकर
सबालों में ये उलझाकर
हमें पागल बनातीं हैं
नशे में डूब जाती हैं
कभी जादू ये करती हैं
कभी अम्बर पे चढ़ती हैं
कभी ये चोट खाकर के
सभी को आज़माकर के
सजातीं हैं नये सपने
बनातीं मीत कुछ अपने
इशारों से बुलातीं हैं
नशा अपना पिलातीं हैं
करें मदहोश ये भाई
गज़ब की है कला पाई
करे दुनियां दुहाई है
ख़ुदा की ये खुदाई है
निगाहें बोलतीं यारो
दिलों को जोतीं यारो
© डॉ० प्रतिभा माही