………. निगल जाना जरूरी था ।
……… निगल जाना जरूरी था ।
//दिनेश एल० “जैहिंद”
1222 1222 1222 1222
दिखाकर अक्ल थोड़ी भी निकल जाना जरूरी था ।
मुझे… हालात के ढाँचे में….. ढल जाना जरूरी था ।।
बता ये दिल.. नहीं तुमने सुनी.. क्यूँ बात यारों की,,
मिले जख्मों से दर्दों को.. निगल जाना जरूरी था ।।
चलाकी…. की अगर होती तभी मैंने…. जमाने से,,
नहीं हालात पैदा होते…… टल जाना जरूरी था ।।
कभी ख्वाहिश नहीं करनी मुझे थी चाँद.. पाने की,,
घुमा कर नज्र.. पानी में… बहल जाना जरूरी था ।।
अगर….. “जैहिंद” की बातों में… मैं आया नहीं होता,,
मुझे गिरगिट के जैसा फिर बदल जाना जरूरी था ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
20. 03. 2018