निखरे मौसम में भी, स्याह बादल चले आते हैं, भरते ज़ख्मों को कुरेद कर, नासूर बना जाते हैं।
निखरे मौसम में भी, स्याह बादल चले आते हैं,
भरते ज़ख्मों को कुरेद कर, नासूर बना जाते हैं।
यूँ तो लिबास में वो, अपनों के छुप कर आते हैं,
पर घाव दुश्मन से भी, बदतर देकर जाते हैं।
चाशनी में डूबी कड़वी बातें, सुनाने वो चले आते हैं,
अपना बनकर, अपनों को हीं वो छल जाते हैं।
हो अँधेरा तो तुम्हारी राह, वो और भी भटकाते हैं,
और अपमान में तुम्हारी, जाने कैसी ख़ुशी वो पाते हैं।
दो चेहरों का स्वांग रचा घर में, तुम्हारे वो चले आते हैं,
एक हाथ से पोछते हैं आंसू, और दूसरे से क़त्ल भी कर जाते हैं।
परायों से मिलकर षड्यंत्रों का जाल बिछाते हैं,
और घावों को सहलाकर खुद को सगा भी बताते हैं।
अतीत की चिंगारियों पर हाथ सेंक जाते हैं,
और खुद के भविष्य की कामना पर गर्व जताते हैं।
हम मुस्कुराकर, खामोशी से दो चेहरे उनके पढ़ते जाते हैं,
और वो शब्दों का स्वांग रचा खुद में इठला जाते हैं।