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22 Mar 2021 · 1 min read

निकला तो था —— सोचता हूं !

**** क्षणिकाएं*****(१)
निकला तो था सपने सजाकर घर से।
भीड़ में कोई तो अपना होगा।
भरे बाजार देखता रहा, आयेगा कोई,
जताने प्रेम अपने उर से।
सपना ही तो था, टूट गया।
आया लोट मै उस डगर से।।
************”*******************!
(२)
सोचता हूं बदलूं हकीकत में सपनों को।
टूटा जहां से जोडू वहीं से।
कोई बना न बना मेरा,
निभाऊं खुद से किए वचनों को।
सभी को तो अपना माना हे।
देना पड़े जान दे जाऊं अपनों को।।
राजेश व्यास अनुनय

Language: Hindi
3 Likes · 6 Comments · 269 Views
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