निःशब्द एक भाषा
कह देते है
निःशब्द भी
बहुत कुछ
मौन रह
कर भी
हो जाते है
निष्ठुर कभी
संवेदनहीन कभी
आंसुओं में
खो जाते हैं कभी
है निःशब्द
विचित्र
कहानी तेरी
बंद मुंह
से कह जाती है
दास्ताँ अपनी
वो अपने परिवार
को समर्पित नारी
जिन्दगी भर
निःशब्द रहती है माँ
सिखाती है
शब्द बच्चों को
वही अपमानजनक शब्द
जब कहते हैं बच्चे
टूट जाती है वो
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल