ना सातवें आसमान तक
ना सातवें आसमान तक
ना धरा के पार तक
ना कालखंड के अंत तक
ना स्थूल ना-ही सूक्ष्म पल तक
ना सप्त-स्वरों के अंतिम धुन तक
ना श्रृष्टि के विस्तार तक
ना मेघों के बरसात तक
फिर कब तक
‘’ उड़ो आप अंबर पर तब तक
आपका मन करे जब तक ‘’