ना रखो किसी से उम्मीद
ना रखो किसी से उम्मीद, कि,
ना रखो किसी से उम्मीद,
ये दिल बड़ा दुखता है,
जानते हुए भी इंसान,
दूसरों से उम्मीद ही क्यों रखता है,
प्याला जहर का सामने, फिर भी,
चख कर क्यों परखता है।
दिल से लगाकर तुझे,
यही लोग गम के तराने दे जाएंगे,
रखवा कर पहले उम्मीद तुझको,
यही लोग फिर अनजाने बन जाएंगे,
तू खुदा से कर सारी उम्मीदें,
जिंदगी में खुशियों के अफसाने बन जाएंगे।
रखी जो दूसरों से उम्मीद,
तेरी ही मुस्कान की चोरी होगी,
लगाई जो खुद से, तेरे पास,
फिर सफलता की तिजोरी होगी।
कारण दुख का लोग नहीं, उम्मीदें हैं,
जो तूने दूसरों से लगाई है,
कहते हैं उम्मीद पर टिकी है जिंदगी,
लेकिन ये दुनिया तो कहां,
उम्मीदों पर खरी टिक पाई है।।
दीपाली कालरा