ना मै हिन्दू था ना ही मुस्लमान(कविता)
ना मै हिन्दू था ना ही मुस्लमान/मंदीप
ना मै हिन्दू था ना ही मुस्लमान,
आया इस जहांन मै था तो सिर्फ एक इंसान।।
क्यों करते हो तुम आपस मै अपनों पर इतना जुल्म,
ये देख कर घबरा जाता है अपना भगवान।।
करते हो तुम आपस में मजहब की बातें,
करते तुम ऐसा हो जाता बदनाम भगवान।।
एक दिन तुमारा भी आएगा मेरा भी,
फिर क्यों तुम बन जाते हो हवान ।।
खुद को अगर लो तुम सवार,
तभी तो बनोगे तुम अच्छे इंसान।।
भाई है हम रहेगे मिलजुल कर,
अब ख़ून ना बहाओ यही है “मंदीप्” का फरमान।।
मंदीपसाई