ना मुराद फरीदाबाद
फरीदा ! तेरे शहर में आकर ,
जिंदगी हो गई झंड ।,
भ्रष्टाचार, गंदगी और शोर शराबा,
उस पर जानलेवा गर्मी से आए तंग ।
क्यों बसाया गया यह जहन्नुम ,
जीतेजी दिखा दिए उसने अपने सब रंग ।
औद्योगिकरण के नाम पर कैसा विकास ,
हमें तो दिखता नहीं यहां उसका कोई अंश ।
उस पर आवारा पशुओं का पसरा रहता ,
यहां वहां, सड़क दुर्घटनाएं करवाता झुंड ।
मेरे इंदौर का क्या मुकाबला करेगा,यह नामुराद !
नाम लेकर अपनी जुबान से मत करो रंग में भंग ।
हम नहीं आना चाहते थे यहां ,कभी भी नहीं !
हमारी बदकिस्मती खीच लाई अपने संग ।
कैसे मुक्ति पाएं अब इससे ,कहां जाए ,,
हिम्मत ही नहीं रही ,जो तकदीर से करे हम जंग ।
अब मौत से ही गुजारिश है वोह सुनले गर,
मेहरबान होकर वही इससे दामन छुड़ाकर ,
ले चले अपने संग ।