ना मुमकिन
डा . अरुण कुमार शास्त्री / एक अबोध बालक / अरुण अतृप्त
तुझे भूल जाऊं ये मुमकिन कहाँ है ।
के जगत भर में डोलूँ तुझसे न बोलूं
ये मुमकिन कहाँ है ।
यादें न होती तो साँसे न होती ।
जीवन में मेरे तो धड़कन न होती ।
क्या क्या बताऊँ , मैं क्या क्या सुनाऊँ ।
ये मुमकिन कहाँ है ।
मैं सब कुछ बताऊँ पर तू कहाँ है ।
तुझे भूल जाऊं ये मुमकिन कहाँ है ।
के जगत भर में डोलूँ तुझसे न बोलूं ।
ये मुमकिन कहाँ है ।
लिए दीप प्यार का मैं हृदय में ।
के डोला किये सपनो के नगर में ।
हर इक डगर पर तू है साथ मेरे ।
कि जैसे चांदनी छुपी है अपने सजन में ।
तुझे भूल जाऊं ये मुमकिन कहाँ है ।
के जगत भर में डोलूँ तुझसे न बोलूं ।
ये मुमकिन कहाँ है ।
यादें न होती तो साँसे न होती ।
जीवन में मेरे तो धड़कन न होती ।
क्या क्या बताऊँ , मैं क्या क्या सुनाऊँ ।
ये मुमकिन कहाँ है ।
नहीं कोई मौका लगा दूँ जो चौका
सुपर फास्ट बालिङ्ग न दे दे कोई धोका
ट्रेनिग तो पूरी प्रेक्टिस भी पूरी
दोस्तों के मेरे मदद पूरी पूरी
अब तुम ही बता दो
लगेगी सेंचुरी कब ये अधूरी
तुझे भूल जाऊं ये मुमकिन कहाँ है ।
के जगत भर में डोलूँ तुझसे न बोलूं
ये मुमकिन कहाँ है ।