ना जमीं रखता हूॅ॑ ना आसमान रखता हूॅ॑
ना जमीं रखता हूॅ॑ ना आसमान रखता हूॅ॑
ना मुरीद रखता हूॅ॑ ना मेहरबान रखता हूॅ॑
अगर कुछ रखता हूं-अगर कुछ रखता हूॅ॑ देखो
अलग सोच है अलग पहचान रखता हूॅ॑—ना जमीं
लोग समझते हैं कि मैं बदनसीब हूॅ॑ बड़ा
वो क्या जाने हुजूर-वो क्या जाने हजूर मुझको
मैं जिंदगी की जरूरत तमाम रखता हूॅ॑—ना जमीं
मैं नहीं हूॅ॑ औरों सा और ना है कोई मुझसा
सोचता हूॅ॑ बहुत मैं-सोचता हूॅ॑ बहुत मैं दूं किसको
दिल की यह वसीयत बेनाम रखता हूॅ॑—ना जमीं
ना जरूरत है मुझको इन झूठे खजानों की
न ये दौलत चाहिए-न ये दौलत चाहिए मुझको
मैं सच्चाई और स्वाभिमान रखता हूॅ॑—ना जमीं
लोग प्यार-इश्क-मोहब्बत रखते हैं दिलों में
मगर लो सुनाता हूॅ॑-मगर लो सुनाता हूॅ॑ सबको
मैं फौलादी सीने में हिंदुस्तान रखता हूॅ॑—ना जमीं
‘V9द’ ये हिंदू-मुस्लिम ये सिख-इसाई है कौन
कोई मज़हब नहीं है-कोई मज़हब नहीं है सुनो
मैं इंसान हूॅ॑ इंसानियत ईमान रखता हूॅ॑—ना जमीं