ना चीज़ हो गया हूँ
अब ख़ुशी भी,
दुःख सा लगने लगी है,
दुःखी रहने की,
आदत जो हो गयी है।
तुझे देखकर,
मेरा दिल मचलता बहुत था,
अब बिना टोक खाए,
सीधा चलने की आदत जो गयी है।
अब सूरज भी दोपहरी से चढ़ने लगा है,
जो ताब था वो भी गिरने लगा है,
अब हर घटा से ग्रहण पाने की आदत जो हो गयी है।
और कितनी नजरें झुका कर चलूँ जमाने से,
ज़मीन में गड़ा हूँ,
धूल में खोने की आदत जो हो गयी है।