ना कहीं के हैं हम – ना कहीं के हैं हम
हार दुनियाँ से मैं, तेरे दर आ गया
ले लो अपनी शरण – ले लो अपनी शरण।
एक तूही सहारा, मेरी अम्बे माँ
ना कहीं के हैं हम – ना कहीं के हैं हम।।
हर गालियों में ठोकर, लगी है मुझे
छोर कर है ना जाना, कहीं अब तुझे
तेरी आँचल में छुपके, है रहना मुझे
डर लगता गर, रहते अकेले में हम।
हार दुनियाँ से मैं, तेरे दर आ गया
ले लो अपनी शरण – ले लो अपनी शरण।।
खुश रहता, तेरे दर पे मैं हर घड़ी
तूही मेरे लिए है, माँ सबसे बड़ी
मुझे मौक दो, मै तेरी सेवा करू
तेरी सेवा में, हरपल रहेगें मगन।
हार दुनियाँ से मैं, तेरे दर आ गया
ले लो अपनी शरण – ले लो अपनी शरण।।
✍️ बसंत भगवान राय
(धुन: हाल क्या है दिलों का ना पूछो सनम)