” ना कहना भी सीखे “
ना कहना भी अपनेआप मे कठोर कदम होता है I कई बार हम इस तरह की स्थितियों में होते है कि हमे वहाँ हाँ में हाँ मिलानी पड़ती हैI कई बार कुछ चीजे ना पसंद आते हुए भी हम उसमे अपनी हाँ का मत देते है I और ना चाह्ते हुए भी उसे बेमन से ढोते रहते है I हर व्यक्ती की अपनी सोच तथा पसंद होती है I अगर आपकी सोच दूसरो से भिन्न है तो अपनी सोच तथा कार्यशैली पर जुटे रहिये I अपने अन्तर्मन की सुने तथा वही हाँ करे जिसको आप ह्रदय से स्वीकार कर सके I यदि आप किसी विशेष बात को ना बोल रहे है तब उस बात से संबंधित आपके पास पर्याप्त तर्क होने चाहिये ताकि आप खुद की बात को सही साबित कर सके I यदि आप ऐसा बोलेन्गे कि मुझे पता है ऐसा ही होता है उस स्थिति मे आप दूसरो की आलोचना का शिकार बनेगे और खुद के सम्मान को ठेस पहुन्चाये I कभी भी बिना तर्क दिये आप खुद को सही साबित नहीं कर सकते I और यह भी उचित नहीं है कि आप हर बात को हाँ मे हाँ मिलाय ,उसमे फ़िर आपकी खुद का कोई मूल्य नहीं रह जाता I हर व्यक्ति का खुद का मानसिक चपलता और कुशलता होती है वह अपनी बुद्धि के तराज़ू से हर सही व गलत बात को तोलता है और सही बात पर अपनी सहमति प्रदान करता है I साधारण व्यक्ती को हर बात मे दम लगता है लेकिन एक योग्य व्यक्ती हर बात को गहराई से जानकर उसमे तर्क़ पैदा करने की क्षमता रखता है I हर बात को हामी न भरे I खुद की तार्किक शक्ति का उपयोग व आकड़े भी जरूरी होते है I
युक्ति वार्ष्णेय ” सरला “