नासाज़ ऐ-दिल
बड़ा नासाज़-नासाज़ सा
क्यों है ऐ-दिल,
जो कहना है खुल के
कह दे आज ऐ-दिल।
हो जाती है गुफ्तगू
अनायास ही ना चाहते हुए भी,
कर इक बार कोशिश फिर से
नाराज़ ऐ-दिल।
आसान नहीं है फिर से
टूटी कश्ती को जोड़ना,
जो बन जाये बात तो
अदभुत काज है ऐ-दिल।
राह बन जाएगी बस
एक कदम बढ़ाने की देर है,
मिल जाएगी वो मंजिल भी
कर तो आगाज़ ऐ-दिल।
कुछ नही बस
धुआं धुंआ सा है,
नज़र आ जायेगा
फिर वही मंजर,
बस कर तो इक बार
नज़र अंदाज ऐ-दिल।
कुमार दीपक “मणि”
08/02/2023