*नासमझ*
आ जाती है जब समझ हमें
हम कुछ का कुछ समझते हैं
हमें नासमझ ही रहने दो
हम तो जो दिल में है वही कहते हैं
नासमझ तो आईने के जैसे होते हैं
वो अपने दिल में कुछ नहीं रखते हैं
अंदर बाहर से एक जैसे होते हैं वो
समझदार तो दिल की दिल में रखते हैं
माना दुनियादारी नहीं आती हमें
तभी लोग हमें नासमझ कहते हैं
कह नहीं सकते बुरे को अच्छा जो
लोग उन्हें ही नासमझ कहते हैं
होता है जब दुखी मन मेरा
चेहरे पर हंसी नहीं ला पाता हूँ मैं
अपने स्वार्थ के लिए, किसी की
झूठी तारीफ़ नहीं कर पाता हूँ मैं
जानता हूं इसी वजह से कई बार
दूसरों से पीछे रह जाता हूँ मैं
पहुँच जाते हैं समझदार ऊपर
और फिर नीचे रह जाता हूँ मैं
लेकिन है इतनी समझदारी मुझमें
समझदार काम नहीं आएंगे मुश्किल में
मौक़ा देखकर दूर भाग जाएंगे वो
कभी साथ नहीं निभाएंगे वो मुश्किल में
नासमझ समझकर हमसे दूर रहने वालों
कभी धोखा नहीं देगा ये नासमझ इतना जान लो
कुछ काम भी नहीं आएगा अगर, कभी दिल नहीं दुखाएगा
एक बार इस नासमझ को भी अपना मान लो।