नारी
19. नारी
ना ये अबला ना ये सबला ना है ये बेचारी ।
बेटी है ये बहन यही है माँ है यही हमारी ।।
ना तो इसकी मजबूरी है, ना इसकी लाचारी I
केवल ये है अहं बड़ा है नर छोटी है नारी ।।
परिभाषा के शब्दजाल मे इसे बाँध ना सकते ।
रुक सकती ना दरिया जैसे, अविचल बहते बहते ।।
नर नारी जीवन के पहिये, ये है कथा हमारी ।
आगे नर पीछे नारी है, बोझ सह रही भारी ।।
जीवन रथ मे एक चक्र से समझो क्या गति होगी I
सिया बिना ज्यों राम भटकते वन वन बनके जोगी ।I
पढ़ा बहुत होगा तुमने देवों से बड़ी भवानी |
इस धरती पर हमने देखी, नित नित नई कहानी ।।
पाँच पूत माता कुंती के कोटि कोटि पर भारी ।
कौशल्या के राम अकेले रावण के संहारी ।।
क्या माता के बिना पूत इस जग मे आ पाते हैं ।
संस्कार जो मिले दूध से वही काम आते हैं ।।
श्रद्धानत हो शीश जहाँ सम्मान वही पाता है ।
नाम हमेशा नर से पहले, नारी का आता है ।।
मात्रा एक नहीं नर मे, पर दो मात्रा संग नारी I
इसीलिए तो शास्त्र कह रहे, नर से भारी नारी ।।
जीत रहा था कल भी पौरुष आज भी उसकी बारी है ।
लेकिन उसकी जीत के पीछे, नारी थी और नारी है ।।
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प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)