नारी
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जली है ताउम्र वो, खुद में अनेकों राज़ दफनाए है,
चली है वो काँटों पर फिर भी, नरगिस बन मुस्काई है,
गुज़ार दी रातें भूखे पेट, पर बच्चों को प्यार से खिलाई है,
आँचल में उसके छेद बहुत थे,पर ममता से ओढ़ाए है,
रक्षाबंधन में भी कलाई पर,वो राखी बांध कर आई है,
तकलीफों में भी हस्ते हस्ते,रस्में सब निभाई है,
कृष्ण के प्यार में डूबी थी वो,राधा मीरा कहलाई है,
सती सावित्री बनकर पति को,मौत से खींचकर लायी है,
तू ही दुर्गा तू ही काली तू ही देवी कहलाई है,
अंग्रेजों से आंख मिलाकर,मर्दानी तू ही लड़ पाई है,
धरती से चाँद की ये दूरी,तूने ही मिटाई है,
और तूने ही सरहदों पर, दुश्मन को हार दिखाई है,
बहन भी तू,बेटी भी तू ,तू गृहणी और तू माई है,
लोहे सी मजबूत भी तू है , तू फूलों सी कुम्हलाई है,
है शक्ति रूप तू नारी स्वरूप,शत शत नमन तुझे मैं करता हूँ,
हृदय से देता हूँ धन्यवाद,जो इस धरती पर तू आयी है।
©ऋषि सिंह “गूंज”