नारी
नारी
मुझको मेरी उड़ान ढूँढने दो॥
खोई हुई पहचान ढूँढने दो॥
आवाज दबा कर मेरी,
कहा गया ये मुझको,
कौन सुनेगा तुझको,
पहुँचे जो हर कान तक
वो अज़ान ढूँढने दो॥
मुझको मेरी उड़ान ढूँढने दो॥
बता के फूल सी मुझे,
मसला, कुचला गया,
ठोकर पर रखे जो सबको
वो पाषाण ढूँढने दो,
मुझको मेरी उड़ान ढूँढने दो॥
जग पूरा ही ये जाने
जन्म सबको दिया माँ ने,
कहे न जो मुझको दासी
वो भगवान ढूँढने दो,
मुझको मेरी उड़ान ढूँढने दो॥
लाज क्यूँ हो मेरा गहना,
क्यूँ मुझको ही है सहना,
पंख फैला मैं उड़ जाऊ
ऐसा खुला आसमान ढूँढने दो,
मुझको मेरी उड़ान ढूँढने दो॥
सुरिंदर कौर