नारी
तू चण्डी का अट्टहास
तू सिंघों की गर्जन है
हे नारी ! तू जननी
तू रुद्राणी का दर्पण है
खण्ड्ग वार चमक बनकर
दुष्टों का संघार करो
रण में कौतूहल बनकर
तुम रानी का अवतार धरो
हे धैर्य स्वामिनी !
निर्णायक बन , बन्द ये अत्याचार करो
मुण्ड माल में कालिका-सी
शोभा तुम अपरम्पार धरो ।
निहारिका सिंह