नारी
नारी तेरे कई रूप
तू वसुधा तुझमें समाए सब स्वरूप
चंचल तन है और मन निर्मल
व्यवहार भी कुशल और वाणी कोमल
सदैव समर्पिता तू , ममता का आँचल |
नदि सा चलन तेरा जा मिलती सागर में
देती जीवन कई रिश्तों ज्यों अमृत गागर में
है सृष्टि की जननी तू प्रेम रूप धारिणी
तू शक्ति सहारिणी तू सबल कार्यकारिणी
तू अन्नपूर्णा अर्पिता तू मूरत ममता की
प्रचंड तेरी क्षमता और अखंड सहनशीलता |
तू दुर्गा तू सरस्वती तू लक्श्मी तू ही सीता
नीलम शर्मा