नारी
भारत की मैं नारी हूं
मैं तो नहीं अनाड़ी हूं
समझती हूं बाते सारी
पहनती मैं साड़ी हूं।
पापा की दुलारी हूं मैं
मम्मी की गुड़िया हूं मैं
भैया की परी हूं मैं
किसी पर नहीं मैं भारी हूं।
बेटी हूं, बहन हूं, बहुरानी हूं
दादी हूं, नानी हूं, परनानी हूं
रिश्तों को नहीं काटो कोई
रिश्ते निभाती मैं सारी हूं ।
भ्रूण परीक्षण मत करो कोई
बेटा आएगा, बेटी नहीं आयेगी,
बेटे की लिए बहू कहां से आयेगी?
परिवार की मैं गाड़ी हूं।
तन- मन से पढ़ती हूं मैं
सर्वदा अब्बल रहती हूं
देखो, कहां न मैं पहुंची हूं
मेरी गाड़ी हरदम अगारी है।
लगभग आधी आबादी हूं
बेटा- बेटी की प्यारी मां हूं मैं
पति की सुहागन पत्नी हूं मैं
अपने राष्ट्र की नाड़ी हूं।
जब भी मिला मुझको मौका
मौके को अवसर में बदली हूं
बीच में हार कभी नही मानी ,
खेली पूरी मैं पारी हूं।
जो मिला, जितना मिला, खुश हूं
ज्यादा की न लालच- चाहत है
न ज्यादा की आशा रखती हूं
दोनो कुलों को मैं तारी हूं।
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स्वरचित : घनश्याम पोद्दार
मुंगेर