नारी तेरे रूप अनेक
प्रेम की परिभाषा है नारी, आशा और विश्वास है नारी।
हर जीवन की आस्था है, और हर व्यक्ति की आस है नारी।।
जीवन का आधार भी नारी,हर टूटी उम्मीद की आस है नारी।
इस नफ़रत की दुनिया में देखो,प्यार की वर्षा फुहार है नारी।।
हर घर की अगर जो नींव है नारी,तो हर परिवार का प्यार भी नारी।
सोचो और तुम करो कल्पना,कैसा हो सकता है परिवार बिन नारी।।
हर परिवार बिना नारी के जो, भोग रहा था कठिनाइयाँ नर्क की।
स्वर्ग वही घर बन जाता है देखो,ज्यों ही कदम रखती उस घर में नारी।।
सदियों से अन्याय सह रही और अपने ही घर में घुट के रह रही नारी।
पी पी कर घूँट वो अपमानों का,न्याय की करती रहती है गुहार ये नारी।।
कोमलता ही है नारी की शक्ति,मत समझो तुम के लाचार है नारी।
संकट देख के अपने परिवार पर,बन जाती है दोधारी तलवार ये नारी।।
एक समय था जब सब कहते थे,एक नारी की दुश्मन कहलाती थी एक नारी।
आज कंधे से कंधा मिलाकर एक दूज़े से देखो बना रही इतिहास ये नारी।।
कहे विजय बिजनौरी अब नारी दिवस पर मत समझो की नारी है बेचारी।
घर समाज या देश की उन्नति के,हर ताले की चाबी है सिर्फ़ और सिर्फ़ ये नारी।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।