नारी
अंशुमाली की प्रदीप्त
रश्मि-सी,
तुषार की धवल
टोप-सी,
सुधांशु की सौम्य
कौमुदी-सी,
सरिता की विशद
तरंगिणी-सी,
प्रदीप की सुजागर
दीपशिखा-सी
भोर की सुरभित
मारुत-सी,
नारी।
गृहस्थ,
खेतिहर,
कामकाजी,
उद्यमी,
संयमी,
गृहलक्ष्मी,
जन्मदात्री,
संग की साथी
नारी।
सुकोमल है,
समाधित है,
ममतामयी है,
करूणामयी है,
अनुरागिनी है,
परोपकारी है।
स्व-ईप्सा की
कामना,
जाग्रत होते ही
कुटुंब-वांछा की
धौंकनी में
स्वाहा करती आई है,
सहर्ष,
निस्स्वार्थ,
काम्या
युग-युगांतर से
एकलव्य-सी।