नारी
गंगा सी निर्मलता मुझमें, यमुना सी है धारा
ब्रहमपुत्र की विशालता और फूलों सी कोमलता मुझमें
ऐसी मेरी काया ऐसी मेरी काया
मेरे साये में लिपटी है, जीवन की हर धारा
जीवन का सृजन करु मै, जीवन का पालन है मुझसे
सावन की घटा बनूँ मै, शरद ऋतु की शीतलता मुझसे
गरमी की तपिश समेटे संकट से भीड़ जाती हूँ
तब जाकर मै माँ, बेटी-बहन कहलाती हूँ।। 2।।
जीवन की आहट है मुझसे यौवन आंचल की छाया
जीवन को दुलारा मैने, जीवन को पुचकारा मैने
जीवन का श्रृंगार किया, जीवन को संवारा मैने
पग-पग में मै साथी बनती , पग-पग में हम साया
ऐसी मेरी काया-ऐसी मेरी काया
जीवन वृतांत छुपी है मुझमें सारी
इसलिए मै कहलाती नारी, इसलिए मै कहलाती नारी