नारी (सहनशक्ति) धैर्यता
अभी तक गौण रहा हैं।
नारी का जीवन मौन रहा हैं।
ना कोई इतिहास रहा हैं।
ना उत्पादक में नाम रहा है।
जीना सिर्फ त्याग रहा है।
वफा के नाम पर जीती है।
जरूरतमंद कहला जी जाती हैं।
आज भी नौकरी हमें छोड़ना पड़ता है।
हरेक खुशी से मुख मोड़ना पड़ता है।
ऐसा कोई पुरूष नहीं करता है।
दर्द बयाँ करू कैसे ,
अपनाया जिसने ,अगर वो छोड़ दें।
नरक का द्वार खोल देता है।
घायल कर तन, जीवन जख्मी कर देता हैं।
मोहब्बत या सोहबत
दोनों मेरे पास हैं।
नौ महीने क्या खास अंदाज हैं।
अधरों की मुस्कान, आँखों के आँसू
वक़्त की रज़ा (आज्ञा ) देखिए।
फिर भी मेरा जीवन उदास है।
वस्तु के रूप में मैं आज भी हूँ ।
हकीकत में जहां जाती हूँ।
बेटी ,गाय , माय
वहीं बसर करना सीख जाती है।
धैर्यता में दर्द ,सहना , सेवा,
करना सीख जाते हैं।
अभी भी गौण रहा है।
नारी का जीवन मौन रहा हैं। _ डाॅ. सीमा कुमारी,बिहार
भागलपुर,दिनांक – 2-4-022 की मौलिक एवं स्वरचित
रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।