नारी सशक्तिकरण
जब भी सोचती हूँ कि
आज़ाद भारत में
नारी सशक्तिकरण
कितना विस्तृत हो सकता है
तो अचानक
कोई सिकुड़ा हुआ
पुरूष सत्तात्मक दानव
किसी कोने से हुंकारता
अचानक आ जाता है सामने
की किस भ्रम में हो
मैं हर जगह हूँ
बस तुम्हे दिखाए गए हैं
आज़ादी के क्षद्म सपने
बिल्कुल उसी तरह
जैसे मार खाए
रोते बच्चे को
ज़मीन थपथपा कर
दिखाया जाता है कि देखो
धरती ने तुमसे ज़्यादा चोट खाई है
या वैसे जैसे किसी स्त्री को
मालकिन बना कर
जोत दिया जाए
आजीवन रोटी कपड़े के वेतन पर
जिसमे अवकाश की
कोई अवधारणा नहीं
हुंह नारी सशक्तिकरण
अफसोस