नारी -शक्ति
हे नारी
क्षुद्र नदियाँ नहीं हो तुम,,
तुम हो
अथाह,,अगाध जलनिधि
नयन-वारि की,,,
कभी
चिरनिद्रा सी शाँत,गंभीर,,
ज्वार-भाटे
नित उठते-गिरते
कभी
जिनमें तू तनहा
डूबती-तिरती –खाती गोते
उफ किए बिना
आँच न आने देती,,
अपने से जुड़ों पर,,
पार लगाती,
” या देवी सर्वभूतेषु
मातृरूपेण संस्थिता” को
अक्षरश: सिद्ध करती
हे ! शक्तिरूपा
हे नयन-वारि की
अथाह जलनिधि,,
नमस्तस्यै–नमस्तस्यै
नमो नम:।।