नारी शक्ति
नारी शक्ति
जन्म संसार को उसने दिया।
मां का स्थान उसे सबने दिया ।
सहन शीलता की बन वो मुरत
ताप तपोमय से तनी तो सुरत ।
संसार इसकी निष्पक्षता से करते है भक्ति
संसार की विपदा हरण को दूर करती रही नारीशक्ति
फिर भी मानव स्पर्धा स्पर्धा, क्यो इसका शोषण हुआ
कहते हैं चन्द मनास्व समाज में नारी का पोषण हुआ
जुल्म मानव का ना चाहकर भी सहती थी।.
अपने मन की पीड़ा को चाहकर भी ना कहती थी
फिर क्यो संसार इसकी निष्पक्षता से करते हैं भक्ति
संसार की विपदा का सदा दुर करती ही नारी शक्ति
पाप ने जब भी समाज पर पांव पसारा था।
द्रोपदी और सीता का कप धर पाप को पचाड़ा था।
प्रण कर मानव ने मानव को कर्मो को लेख दिया था।
चुप रहकर नारी शक्ति का भान करा वर्चस्व के टुकदे को फेक दिया था
फिर भी संसार को निष्पक्षता से भक्ति करनी पड़ी थी
आज संसार की विपदा पर हावि रहती नारी शक्ति
कन्धे से कन्धा मिलाकर आज मानव को पछाड़ रही है। स्वार्थ की बलि पर कटार रख दानव को उखाड़ रही है। हावि हो नारी शाक्त मानव पर दानव को जगा रही हैं। आज क्यो यहीं दानव देख नारी को द तान्डन करा रहा है।
फिर भी संसार निष्पक्षता से भक्ति करनी पड़ती है।
आज संसार की विपदा पर हानि क्यो रहती नारीशक्ति: