**नारी शक्ति**
**नारी शक्ति**
नारी शक्ति है, जननी है, माँ बहन बेटी है,
बिना नारी के सृष्टि में कहाँ सृजन होती है,
ज़न कई ऐसे हैं, जो नारी को लक्ष्मी कहे,
गाड़ी के पहिये के जैसे वो संग- संग चले,
गुण अनेकों हैं, घमंडी लोगों को दिखते नहीं।
बेवजह उनमें ढूंढते हैं कमियां यहां,
चांद पर नारी हैं शस्त्रधारी भी है,
नीले अम्बर में प्लेनें उड़ाती भी है,
हो जाते हैं घर सुने कई,
जिस घर में कोई एक नारी न हो।
यदि बनो राम तुम तो मैं सीता बनूँ,
यदि बनोगे असुर तो मैं चंडी बनूँ
आज़ाद भारत में सशक्त नारी को,
नीचा दिखाने वाले अहंकारी है वो,
इस समाज के लिए एक बीमारी है वो
तुम जीते हो इस पल को ही
वो भूत भविष्य वर्तमान की त्रिवेणी है
नैहर उसका है बीतता बचपन
पति परिवार है वर्तमान संगम
संतति में दिखता भविष्य है
जिस के संवारने में बीता यौवन।
त्रिकाल के कपाल पर ,
अविरल अविरत बहे जीवन धारा,
फिर भी अबला नारी हो रही क्यों बेहाल है।
मौलिक एवं स्वरचित
© निरुपमा कर्ण
पटना (बिहार)
तिथि – १६/०६/२०२१
मोबाइल न. – 8271144282