नारी शक्ति
“नारी शक्ति ”
नारी….तुम शक्ति हो
तुम आत्मा हो हर प्राण की
नारी तुम्हारी शक्ति है नारीत्व।
तुम हर रूप में जीवन को आलोकित करती हो
कभी अन्नपूर्णा तो कभी लक्ष्मी बन
आँगन को सजाती हो।
फिर क्यों….स्वंय को भूल जाती हो।
प्रेम,वात्सल्य,शौर्य,सहनशीलता.
हौसलें के तरकश में सँवारा है।
कँटीली झाड़ियों के झंकार को,
अपनी वांछा से निरसन गिराया है।
नारी तुम शक्ति हो हर प्राण की..
तो उठो..जागो..स्वायत रक्षा के लिये,
सीमाओं का अतिक्रमण करो,
अपने हिस्से के आसमाँ के लिये।
अपने आत्मा की प्रतिमा के लिये।
त्याग का कर दो त्याग,
समाज के तंग नजरिये से।
नारी तुम शक्ति हो हर प्राण की..
भयानक वन में विचरण करते हुए,
अग्नि के फूलों को समेटी हो,
कजली सुरंग से गुजरती हो।
अनल पंछी की तरह खु़द की राख से,
पुनर्जीवित होती हो।
तुम दृढ़ता और निडरता की मिसाल हो,
नारी ….तुम शक्ति हो हर प्राण की।
हर लड़की हर स्त्री इतनी उड़ान भरे,
एक मीरा, एक सीता, एक राधा, एक अहल्या नहीं,
एक गीता, एक सिंधू ,एक सायना, एक सना मरीन नहीं,
स्त्री की आजा़दी हो औ आजा़द हो फिजा़ का।
सारे बंधन को तोड़ भँवर में मत उलझ,
समाज के दहकती सुलगती सवालों से निकल,
अपना स्वतंत्र स्वरुप दिखा।
तभी मैं भी मुक्त हूँ, आजा़द हूँ।
नारी तुम शक्ति हो सृष्टि की,
तुम आत्मा हो हर प्राण की।।
-रंजना वर्मा