नारी शक्ति नारी सम्मान
असहनीयऔर असीमित पीड़ा
जिसको न जाने कितनी बार
हँसते और समाज से लडती हुई
बाधित और बाध्य होती हुई
सीमित और असाध्य साधनों के साथ
विपरीत हवाओं को चीरती हूई
चित्कारती हुई व छोटों बड़ों की
दुत्कार ओर तिरस्कार सहती
कुछ न कहती, बस सहती
भय में डरी और सहमी
सहनशीलता की मिशाल बन
रक्षक ही बने भक्षकों की
बिस्तर की सेज पर सजती हुई
जमाने की गिद्ध निगाहों से
कभी बचती बचाती और
फसती फसाती धँसती धँसाती
और समाज के मसीहे बने
भेड़ियों का शिकार बनती
अथक निरन्तर कभी न समाप्त
होने वाली जीवन यात्रा में
आगे बढते हुए अपनी मंजिल की
ऊँचाइयों को छून की
चाहना मै संयमित और मर्यादित
अपनी भावनाओं और कभी न
पूरी होने वाली अपनी हसरतों चाहतों को
अपने सीने के आँचल में समेटे हुए
समाज,जात,धर्म के कर्णधारों से
स्वछंद और निर्भिकता से पूछती है वह
परतन्त्रता और बंदिशों की
जंजीरों और बेड़ियों से
कब आजाद होगी और कब
स्वतंत्रता के खुले आसमान में
सांस लेगी और अपने ढंग से
अपना निज का जीवन निज के
मूल्यों कसौटी पर जीएगी
और सीना ठोक कर कह पाएगी
वह अबला नहीं सबला है
समाज का स्वच्छ दर्पण हैं
नई रोशनी नया उजियारा है
सदैव आगे बढने की
नव राह नव चाह
समाज और सम्पूर्ण देश की
नारी शक्ति नारी सम्मान
सुखविंद्र सिंह मनसीरत