नारी शक्ति का स्वयं करो सृजन
नारी शक्ति का स्वयं करो श्रृजन,
उठा तलवार, सुन हृदय की पुकार,
भर नयनों में ज्वाला, हो सिंह सवार,
दृढ करले तू आज मन
नारी शक्ति का स्वयं करो श्रृजन ।
क्या लज्जा थाम चलेगा वह समाज,
जब दृष्टि कलुषित ही है उसकी आज,
जाने कब किस नारी की लूटेगी लाज,
समझा कहाँ, क्या बेटी, क्या हो बहन,
नारी शक्ति का स्वयं करो श्रृजन ।
समय वह रावण, एक था दुःशासन,
एक इन्द्र की निर्दय नयन,
लुटी अहिल्या, लुटी द्रोपदी,
पवित्र सीता का हुआ हरण,
नारी शक्ति का स्वयं करो श्रृजन ।
है आज घर घर दुःश्साशन,
फट रहा चीर, बह रहा नीर,
कितनों ने कितनों का लूटा वसन,
बन कृष्ण, डाल जितना आवरण,
नारी शक्ति का स्वयं करो श्रृजन ।
क्यों गुहार लगाए राम कृष्ण का,
जब नोच रहा गिद्ध मांस जिस्म का,
तड़प रही तू विलख रही तू,
करबद्ध जीने से स्वीकार करो मरण,
नारी शक्ति का स्वयं करो श्रृजन ।
हुआ, ममता आंचर, दूध पिलाने वाली,
प्रेम सुधा बरसाने वाली,
रक्त पी आज तु बन विक्राल काली,
भस्मासुर का चल, उठा चलो कफ़न,
नारी शक्ति का स्वयं करो श्रृजन ।
-उमा झा