नारी-मन
###नारी-मन
मेरे नारी-मन की अनवरत प्रगति हो ।
कुछ ऐसे ही अविरल मेरी उन्नति हो ।।
हो ये तन मेरा साजन की बाँहों में ।
उनकी छाया बसी रहे निगाहों में ।।
हो नाम उनका मेरी हरेक आहों में ।
मेरे दिन-रात कटे उनकी पनाहों में ।।
कुछ इस तरह मेरे जीवन की गति हो–
मेरे नारी-मन की अनवरत प्रगति हो ।
दो फूल मुस्काए मेरे इस बगिया में ।
हो दूध आँचल में सुकून अँखिया में ।।
मीठे सपने आते रहे मेरी नींदिया में ।
ये जीवन कट जाए मीठी बतिया में ।।
मेरे पिया संग ऐसी मेरी सुमति हो —
मेरे नारी-मन की अनवरत प्रगति हो ।
इस प्रेम-बँधन की यही कहानी हो ।
मेरे साजन राजा और मैं रानी हों ।।
मेल हमारा जैसे दूध और पानी हो ।
खुशियों में डूबी यह ज़िंदगानी हो ।।
हर नारी की जग में यही सुगति हो –
मेरे नारी-मन की अनवरत प्रगति हो ।
मन में मेरे हमेशा श्लील प्रवृत्ति हो ।
बुद्धि में मेरी हरदम परिष्कृति हो ।।
आचरण में हरपल नारी-प्रकृति हो ।
मेरा नारी-मन नारी की शक्ति हो ।।
जग में हरेक नारी की यही सद्गति हो —
मेरे नारी-मन की अनवरत प्रगति हो ।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
08. 04. 2017