नारी बस यूँ ही छली गयी
बना देवी पूजा सदा मुझे,
सदियों से ये ही रीत रही।
मिला न मान-सम्मान फिर भी,
नारी बस यूँ ही छली गयी।।
सब सुख तज कुछ मिला सिया को?
तुम मर्यादा पुरुष बन गए।
अग्नि परीक्षा वो देती रही।
नारी बस यूँ ही छली गयी।।
माँ की अनुमति से बंट गयी।
पञ्च पतियों की भार्या हुई।
शकुनि की चाल में फंस गयी।
नारी बस यूँ ही छली गयी।।
भार्या तज वन गमन किया तब।
महावीर बन पूजे गये तुम।
यशोधरा नीर बहाती रही।
नारी बस यूँ ही छली गयी।।
जन्मांध संग व्याह करके ।
निज सुख भी सब त्याग दिया ।
पुत्रवधु की लाज लुटती रही।
नारी बस यूँ ही छली गयी।।
उर्मिला भी कब सुखी रही।विरहाग्नि में नित जलती रही।
क्यों मिला दंड पूछती गयी।
नारी बस यूँ ही छली गयी।।
आरती लोहनी