नारी फिर भी महान है
नारी फिर भी महान है
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समाज पुरुष प्रधान है
नारी फिर भी महान है
अन्दर से सदैव सड़ती
घुट घुट हैं रहती मरती
बातें हैं दिल में रखती
रहती मीठी मुस्कान है
नारी फिर भी महान है
भावी पीढ़ी को जनती
कहीं तेरी नहीं चलती
आशाएँ हैं नित मरती
यह घरेलू दास्तान है
नारी फिर भी महान है
दहेज बलि है तू चढ़ती
उत्पीड़न रहे तू सहती
अटकी सी सांसे चलती
रस्ते तुम्हारे सुनसान हैं
नारी फिर भी महान है
बुरी नजर रहें घूरती
आबरू पर कर डालती
निष्कृष्ट हो आह भरती
सहती सदा अपमान है
नारी फिर भी महान है
नौजवान चाहे अधेड़
मानव है वहशी अंधड़
खेतों को है खाए बाड़
खोती रहती सम्मान है
नारी फिर भी महान है
दुख सारे मन में हरती
सहमी सी रहती डरती
ईंधन भांति रहे जलती
मिला ऐसा वरदान है
नारी फिर भी महान है
सुखविंद्र करे अरदास
नेह का आपार निवास
अपनों का न हो प्रवास
खुदा का ये अहसान है
नारी फिर भी महान है
समाज पुरुष प्रधान है
नारी फिर भी महान है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)