नारीपुर के बाबू जी
सुनयना जब भी छुट्टियों में गाँव जाती तो देखती की बड़की अम्माँ और चाची लोगों के बीच नारीपुर के बाबू जी सर पर साड़ी के पल्ले की तरह गमछा लपेटे हाथ हिला – हिला कर बात करते और मुँह पर हाथ रख कर हँसते रहते । नर के रूप में नारी थे , घर के सारे मर्द घर के बाहर दुआर पर रहते बस खाना खाने और ज़रूरत के वक्त घर के अंदर आते लेकिन नारीपुर के बाबू जी तो दिनभर घर के अंदर औरतों में घुसे रहते , जिन औरतों से वो पद में बड़े थे वो औरतें उनसे घूँघट भी करतीं और उन्हीं के साथ खुसपुसाती भी रहती हाँ एक बात थी उनके सम्मान में कोई कमी नही थी जेठ होने के नाते भाई जी – भाई जी कह कर संबोधित करती ।
जब सुनयना छोटी थी तो इन सब बातों में उसको कुछ अलग नही लगता था धीरे – धीरे अजीब लगने लगा तब शुरू हुआ सुनयना का अम्माँ से पूछने का सिलसिला पहले तो अम्माँ ने झिड़क दिया और बोलीं बच्चों को हर बात में नही घुसना चाहिए बस बात खतम… लेकिन सुनयना तो ठहरी अपने किस्म की निराली वो जानती थी अम्मा के पेट से बात निकलवाना तो नामुमकिन था एक दिन मौका देख कर छोटी चाची के पीछे पड़ गयी , उसकी ज़िद के आगे चाची हार गई और बताना शुरू किया……नारीपुर के बाबू जी का ये घर उनका ननिहाल था उनके अपने गाँव का नाम नारीपुर था ( इसीलिए सब लोग उनको इस नाम से बुलाते थे ) दस साल की उमर से ही वो यहाँ रहने लगे थे शरीर लड़के का और चाल – ढाल लड़कियों की , वक्त के साथ सब बड़े हो गये इसी बीच नारीपुर के बाबू को पड़ोस की लड़की से प्यार हो गया एकतरफा प्यार और वो भी अर्धनारिश्वर के रूप में कभी इज़हार नही कर पाये औऱ लड़की की शादी हो गयी , वो अपनी दुनिया में खुश लेकिन उसके विवाह के बाद नारीपुर के बाबू जी यहीं के होकर रह गये बस इसलिए की वो लड़की जब भी अपने पीहर आयेगी तो वो उसको देख तो पायेगें…..ये बता चाची रूक गयीं ….वाकई अजब – गज़ब था नारीपुर के बाबू जी का प्यार उनकी मृत्यु भी ननिहाल में ही हुयी जबतक जिंदा रहे एक भी मौका उस लड़की को देखने का उन्होंने गवाया नही और उसकी छवि आँखों में बसा कर अपने साथ ले गये नारीपुर के बाबू जी ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 12/03/2019 )