नारी जाति को समर्पित
बहुत सुना ली सब को अपनी व्यथा,
अब न तू समाज में बस मज़ाक बन,
अबला, असहाय, कमज़ोर न तू बन,
तू खुद अपनी अब बस पहचान बन।
अन्धे, गूंगे बहरों का समाज है ये ऐसा,
कठिन समय पे भाग जाए भाई भी ऐसा,
न ही मिन्नतें कर, क्रोध की ज्वाला बन,
समय की ही मांग है, तू अब अंगार बन।
तेरी वजह से समाज, ये संसार जीवंत,
तू ही नये समाज का अब निर्माण बन,
क्यों सहे तू समाज के जले कटे ताने,
तू बस समाज की नई ही तलवार बन।
न हो व्यथित, न पुकार और किसी को,
पापी समाज में तू स्वयं की पुकार बन,
कर न सके तुझे कोई ही कलंकित अब,
ऐसी ही तू तीव्र बस वज्र का प्रहार बन।
बंदिशों को तोड़ अब तू कैद से निकल,
लाज शर्म छोड़ तू पाप विनाशिनी बन,
कौन लेगा तेरी परीक्षा रूप विशाल बन,
दुष्टों का नाश हों, ऐसी ही अवतार बन।
हो प्रचण्ड, प्रज्जवलित मशाल सी अब,
धधकती ज्वाला का अब प्रतिरूप बन,
हाथ लगाते ही राख ही हो जाए कुकर्मी,
ऐसा तू अग्निकुण्ड अब विकराल बन।
बहुत बन चुकी प्रेम की अद्वितीय मूर्त,
बहुत सह लिया समाज का अत्याचार,
बहुत हो लिया अब रूह का बलात्कार,
अपनी ही जाति के दर्द का प्रतिहार बन।
जिगर रख इतना कुकर्मी खुद भाग जाए,
बलात्कारी बलात्कार का शिकार हो जाए,
सहम जाए इतना,खुद में ही बदलाव बन,
नये समाज की नींव की तू नई हुँकार बन।
नारी ही नारी की शत्रु ही जहाँ बन जाए,
ज़ंजीरों में जकड़े, दूसरों को छलती जाए,
उनकी ही आँखे खोलने का एहसास बन,
तू नई पीढ़ी की नई यों अब मिसाल बन।
उठ, जाग, कर्तव्य बहुत निभा लिये,
समाज का सुनहरा अब इतिहास बन,
बहुत सुना ली सब को अपनी व्यथा,
अब न तू बस समाज में मज़ाक बन।